गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री के अक्षरों का आपसी गुंथन, स्वर-विज्ञान और शब्दशास्त्र के ऐसे रहस्यमय आधार पर हुआ हैं कि उसके उच्चारण मात्र से सूक्ष्म शरीर में छिपे हुए अनेक शक्ति केंद्र अपने आप जागृत होते हैं| सूक्ष्म देह के अंग-प्रत्यंगों में अनेक चक्र उपचक्र, ग्रंथियाँ, मातृकायें, उपत्यकायें, भ्रमर मेरु आदि ऐसे गुप्त संस्थान होते हैं जिनका विकास होने से साधारण-सा मनुष्य प्राणी अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता हैं| 

गायत्री मंत्र का उच्चारण किस क्रम से होता हैं उससे जिह्वा, दाँत, कंठ, तालू, ओष्ठ, मूर्धा आदि से एक विशेष प्रकार के ऐसे गुप्त स्पंदन होते हैं जो विभिन्न शक्ति-केंद्रों तक पहुँचकर उनकी सुषुप्ति हटाते हुए चेतना उत्पन्न कर देते हैं| इस प्रकार जो कार्य योगी लोग बड़ी कष्टदायक साधनाओं और तपस्याओं से बहुत काल में पूरा करते हैं वह महान कार्य बड़ी सरल रीति से गायत्री के जप मात्र से स्वल्प समय में ही पूरा हो जाता हैं|

साधक और ईश्वर सत्ता गायत्री माता के बीच में बहुत दूरी हैं, लंबा फासला हैं| इस दूरी एवं फासले को हटाने का मार्ग इन २४ अक्षरों से मन्त्र से होता हैं| जैसे जमीन पर खड़ा हुआ मनष्य सीढ़ी की सहायता से ऊँची छत पर पहुँच जाता हैं वैसे ही गायत्री का उपासक इन २४ अक्षरों की सहायता से क्रमश: एक-एक भूमिका पर करता हुआ, ऊपर चढ़ता हैं और माता के निकट पहुँच जाता है।

गायत्री का एक-एक अक्षर एक-एक धर्म शास्त्र है। इन अक्षरों को व्याख्या स्वरूप ब्रह्माजी ने चारों वेदों की रचना की और उनका अर्थ बताने के लिए ऋषियों ने अन्य धर्म ग्रन्थ बनाये। संसार में जितना भी ज्ञान-विज्ञान है वह बीज रूप से इन २४ अक्षरों में भरा हुआ है। एक-एक अक्षर का अर्थ एवं रहस्य इतना अधिक है कि उसे जानने में एक-एक जीवन लगाया जाना भी कम है। इन २४ अक्षरों के तत्व-ज्ञान को जो जानता है उसे इस संसार में और कुछ जानने योग्य नहीं रहता।

गायत्री सबसे बड़ा मन्त्र है। इससे बड़ा और कोई नहीं। जो कार्य संसार के अन्य किसी मन्त्र से हो सकता है वह गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इससे वेदोक्त दक्षिण मार्ग और तन्त्रोक्त वाम मार्ग दोनों ही प्रकार की साधना हो सकती हैं।