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How to eat (in Hindi)


भोजन के संबंध में...........✍🏻
जो हम खाते हैं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है
कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते हैं। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

आप क्या खाते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दशा में खाते हैं। आप आनंदित खाते हैं, या दुखी, उदास और चिंता से भरे हुए खाते हैं। अगर आप चिंता से खा रहे हैं, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी पाय़जनस होंगे, जहरीले होंगे। और अगर आप आनंद से खा रहे हैं, तो कई बार संभावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाए। इसकी बहुत संभावना है। आप कैसे खाते हैं, किस चित्त-दशा में?

हम तो चिंता में ही चौबीस घंटे जीते हैं। तो हम जो भोजन करते होंगे, वह कैसे पच जाता है यह मिरेकल है, यह बिलकुल चमत्कार है। यह भगवान कैसे करता है, हमारे बावजूद करता है यह। हमारी कोई इच्छा उसके पचने की नहीं है। यह कैसे पच जाता है, यह बिलकुल आश्चर्य है! और हम कैसे जिंदा रह लेते हैं, यह भी एक आश्चर्य है! भाव-दशा--आनंदपूर्ण, प्रसादपूर्ण निश्चित ही होनी चाहिए।

लेकिन हमारे घरों में हमारे भोजन की जो टेबल है या हमारा चौका जो है, वह सबसे ज्यादा विषादपूर्ण अवस्था में है। पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती है कि पति कब घर खाने आ जाए। चौबीस घंटे का जो भी रोग और बीमारी इकट्ठी हो गई है, वह पति की थाली पर ही उसकी निकलती है। और उसे पता नहीं कि वह दुश्मन का काम कर रही है। उसे पता नहीं, वह जहर डाल रही है थाली में।

और पति भी घबड़ाया हुआ, दिन भर की चिंता से भरा हुआ थाली पर किसी तरह भोजन को पेट में डाल कर हट जाता है! उसे पता नहीं है कि एक अत्यंत प्रार्थनापूर्ण कृत्य था, जो उसने इतनी जल्दी में किया है और भाग खड़ा हुआ है। यह कोई ऐसा कृत्य नहीं था कि जल्दी में किया जाए। यह उसी तरह किए जाने योग्य था, जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है, जैसे कोई प्रार्थना करने बैठता है, जैसे कोई वीणा बजाने बैठता है। जैसे कोई किसी को प्रेम करता है और उसे एक गीत सुनाता है।
यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। वह शरीर के लिए भोजन पहुंचा रहा था। यह अत्यंत आनंद की भाव-दशा में ही पहुंचाया जाना चाहिए। यह एक प्रेमपूर्ण और प्रार्थनापूर्ण कृत्य होना चाहिए।

जितने आनंद की, जितने निश्चिंत और जितने उल्लास से भरी भाव-दशा में कोई भोजन ले सकता है, उतना ही उसका भोजन सम्यक होता चला जाता है।
हिंसक भोजन यही नहीं है कि कोई आदमी मांसाहार करता हो। हिंसक भोजन यह भी है कि कोई आदमी क्रोध से आहार करता हो। ये दोनों ही वायलेंट हैं, ये दोनों ही हिंसक हैं। क्रोध से भोजन करते वक्त, दुख में, चिंता में भोजन करते वक्त भी आदमी हिंसक आहार ही कर रहा है। क्योंकि उसे इस बात का पता ही नहीं है कि वह जब किसी और का मांस लाकर खा लेता है, तब तो हिंसक होता ही है, लेकिन जब क्रोध और चिंता में उसका अपना मांस भीतर जलता हो, तब वह जो भोजन कर रहा है, वह भी अहिंसक नहीं हो सकता है। वहां भी हिंसा मौजूद है।

No mind story in Hindi

निर्विचार होने की कला : 

चीन की प्रसिद्ध कथा है कि एक बहुत बड़ा शिकारी था। उसने अपने सम्राट से कहा कि अब मैं चाहता हूं कि आप घोषणा कर दें कि मैं पूरे चीन का प्रथम शिकारी हूं। मुझसे बड़ा कोई धुनर्विद नहीं है। अगर कोई हो, तो मैं चुनौती लेने को तैयार हूं।

सम्राट भी जानता था कि उससे बड़ा कोई धनुर्विद नहीं है। घोषणा करवा दी गई, डुंडी पिटवा दी गई सारे साम्राज्य में कि अगर किसी को चुनौती लेनी हो, तो चुनौती ले ले। नहीं तो घोषणा तय हो जाएगी कि यह व्यक्ति राज्य का सबसे बड़ा धनुर्धर है।

एक बूढ़े फकीर ने आकर कहा कि भई, इसके पहले कि घोषणा करो, मैं एक व्यक्ति को जानता हूं, जो चुनौती तो नहीं लेगा, उसको शायद तुम्हारी घोषणा पता भी नहीं चली, क्योंकि वह दूर पहाड़ों में रहता है। उसको पता ही नहीं चलेगा कि तुम्हारी डुंडी वगैरह पिटी। वहां तक कोई जाएगा भी नहीं। और वह अकेला एकांत में वर्षों से रहता है। और मैं लकड़हारा हूं और उस जंगल से लकड़ियां काटता था, जब जवान था। मैं जानता हूं कि उसके मुकाबले कोई धनुर्विद नहीं है। इसलिए इसके पहले कि घोषणा की जाए, इस धनुर्विद को कहो कि जाए, उस फलां-फलां बूढ़े को खोजे। अगर वह बूढ़ा जान जाए कि यह धनुर्विद है, तो ही समझना। नहीं तो यह कुछ भी नहीं है।

वह धनुर्विद गया उस बूढ़े की तलाश में। बड़ी मुश्किल से तो उस पहाड़ पर पहुंच पाया। एक गुफा में वह बूढ़ा था। बहुत वृद्ध था--कोई एक सौ बीस वर्ष उसकी उम्र होगी। कमर उसकी झुक गई थी बिलकुल। झुक कर चलता था। यह क्या धनुर्विद होगा! पर आ गया था इतनी दूर, तो उसने कहा कि महानुभाव, मैं फलां-फलां व्यक्ति की तलाश में आया हूं। निश्चय ही आप वह नहीं हो सकते, क्योंकि आपकी देह देखकर ही लगता है कि आप क्या धनुष उठा भी नहीं सकेंगे! धनुर्विद आप क्या होंगे! आप कमर सीधी कर नहीं सकते। आपकी कमर ही तो प्रत्यंचा हुई जा रही है! तो जरूर कोई और होगा। मगर आपसे पता चल जाए शायद। आप इस पहाड़ पर रहते हैं। जानते हैं आप यहां कोई फलां नाम का धनुर्विद?

वह बूढ़ा हंसा। उसने कहा कि वह व्यक्ति मैं ही हूं। और तुम चिंता न करो मेरी कमर की। और तुम यह भी चिंता मत करो कि मैं हाथ में धनुष ले सकता हूं या नहीं। धनुष जो लेते हैं, वे तो बच्चे हैं। मैं तो बिना धनुष हाथ में लिए, और शिकार करता हूं।

वह तो आदमी बहुत घबड़ाया। उसने कहा कि मार डाला! बिना धनुष-बाण के कैसे शिकार? उसने कहा, आओ मेरे साथ।

वह बूढ़ा उसको लेकर चला। वह गया एक पहाड़ के किनारे जहां एक चट्टान दूर खड्ड में निकली थी, कि उस चट्टान से अगर कोई फिसल जाए, तो हजारों फीट का गङ्ढ था, उसका पता ही नहीं चलेगा। उसका कचूमर भी नहीं मिलेगा कहीं खोजे से! हड्डी-हड्डी चूरा-चूरा हो जाएगी। वह बूढ़ा चला उस चट्टान पर, और जाकर बिलकुल किनारे पर खड़ा हो गया। उसकी अंगुलियां चट्टान के बाहर झांक रही हैं पैर की। और कमर उसकी झुकी हुई! और उसने इससे कहा कि तू भी आ जा।

यह तो गिर पड़ा आदमी वहीं! यह तो उस चट्टान पर खड़ा हुआ, तो इसको चक्कर आने लगा। इसने नीचे जो गङ्ढा देखा, इसके हाथ-पैर कंपने लगे। और वह बूढ़ा अकंप वहां चट्टान पर सधा हुआ खड़ा है। आधे पैर बाहर झांक रहे हैं! अब गिरा, तब गिरा! इसने कहा कि महाराज, वापस लौट आओ! मुझे हत्या का भागीदार न बनाओ!

उसने कहा तू, फिक्र ही मत कर। तू कैसा धनुर्धर है! तुझे अभी मृत्यु का डर है? तो तू क्या खाक धनुर्धर है। और तू कितने पक्षी मार सकता है अपने धनुष से? देख ऊपर आकाश में पक्षी उड़ रहे हैं।

उसने कहा, अभी मैं कहीं नहीं देख सकता। इस चट्टान पर इधर-उधर देखा; कि गए! इधर मैं धनुष भी नहीं उठा सकता। और निशाना वगैरह लगाना तो बात ही दूर है! मेरी प्रार्थना है कि कृपा करके वापस लौट आइए। यह तो गया भी नहीं उतनी दूर तक!

उस बूढ़े ने कहा कि देख। मैं न तो धनुष हाथ लेता हूं, न बाण; लेकिन यह पूरी पक्षियों की कतार मेरे देखने से नीचे गिर जाएगी। और उसने पक्षियों की तरफ देखा और पक्षी गिरने लगे। यह धनुर्विद उसके चरणों में गिर पड़ा और कहा कि मुझे यह कला सिखाओ। यह क्या माजरा है! तुमने देखा और पक्षी गिरने लगे! उसने कहा, इतना विचार काफी है। अगर निर्विचार होओ, तो इतना विचार काफी है। इतना कह देना कि गिर जा, बहुत है। पक्षी की क्या हैसियत कि भाग जाए! भाग कर जाएगा कहां?

वर्षों वह धुनर्विद उसके पास रहा। निर्विचार होने की कला सीखी। भूल ही गया धनुष-बाण। यहां धनुष-बाण का कोई काम ही न था। और जब निर्विचार हो गया, तो उसने धनुष-बाण तोड़ कर फेंक दिया। सम्राट से जा कर कहा कि बात ही छोड़ दो। जिस आदमी के पास मैं होकर आया हूं, उसको पार करना असंभव है। हालांकि थोड़ी-सी झलक मुझे मिली। बस, उतनी मिल गई, वह भी बहुत है। धनुष-बाण, मेरे गुरु ने कहा है, कि बच्चों का काम है। जब कोई सचमुच धनुर्धर हो जाता है, तो धनुष-बाण तोड़ देता है। और जब कोई सचमुच संगीतज्ञ हो जाता है, तो वीणा तोड़ देता है। फिर क्या वीणा पर संगीत उठाना, जब भीतर का संगीत उठे!
  
ओशो

No benefit of yoga (Hindi)

प्रश्न : कभी-कभी साधना करते करते अचानक बहुत सारी नेगेटिविटी आ जाती है, लगता है कि सब छोड़ दिया जाए इतनी मेहनत के बाद भी कुछ अच्छा नहीं हो रहा है। क्या फायदा इस साधना का  ? ?
 
तो मेरे प्यारों ! चिंता मत करो , खुश हो जाओ  क्योंकि जन्म-जन्म के संचित कर्म नष्ट हो रहे हैं, जो कष्ट बड़े रूप में होने थे वो सब छोटे रूप में ही बाहर आ रहे हैं और आपकी साधना सफल हो रही है।
यही समय है आपकी आस्था और विश्वास के परीक्षण का। इस समय डिगना नहीं अपने मार्ग से।
पा जाओगे जो चाहते हो। विश्वास करो।
भाव रखो अपने शिव शिवा पर
अपने सिद्ध गुरु और गुरुमंडल पर ।।
 
 ~: श्री श्री रवि शंकर