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Yoga removes negativity

योग से खत्म होती है मनुष्य के अन्दर की नकारात्मकता

योग भारतीय प्राचीन संस्कृति की परम्पराओं को समाहित करता है। भारत देश में योग का प्राचीन समय से ही अहम स्थान है। पतंजली योग दर्शन में कहा गया है कि- योगश्चित्तवृत्त निरोधः अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ह्रदय की प्रकृति का संरक्षण ही योग है। जो मनुष्य को समरसता की और ले जाता है। योग मनुष्य की समता और ममता को मजबूती प्रदान करता है। यह एक प्रकार का शारारिक व्यायाम ही नहीं है बल्कि जीवात्मा का परमात्मा से पूर्णतया मिलन है। योग शरीर को तो स्वस्थ्य रखता है ही इसके साथ-साथ मन और दिमाग को भी एकाग्र रखने में अपना योगदान देता है। योग मनुष्य में नये-नये सकारात्मक विचारों की उत्पत्ति करता है। जो कि मनुष्य को गलत प्रवृति में जाने से रोकते हैं। योग मन और दिमाग की अशुद्धता नकारात्मकता को बाहर निकालकर फेंक देता है। साथ-साथ योग से मनुष्य के अन्दर की नकारात्मकता खत्म होती है। योग व्यक्तिगत चेतना को मजबूती प्रदान करता है। 

● योग मानसिक नियंत्रण का भी माध्यम है। हिन्दू धर्म, बौध्द धर्म और जैन धर्म में योग को आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाता है। योग मन और दिमाग को तो एकाग्र रखता है ही साथ ही साथ योग हमारी आत्मा को भी शुध्द करता है। योग मनुष्य को अनेक बीमारियों से बचाता है और योग से हम कई बीमारियों का इलाज भी कर सकते हैं। असल में कहा जाए तो योग जीवन जीने का माध्यम है।

● श्रीमद्भागवत गीता में कई प्रकार के योगों का उल्लेख किया गया है। भगवद गीता का पूरा छठा अध्याय योग को समर्पित है। इस मे योग के तीन प्रमुख प्रकारों के बारे में बताया गया है। इसमें प्रमुख रूप से कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग का उल्लेख किया गया है। कर्म योग- कार्य करने का योग है। इसमें व्यक्ति अपने स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है। भक्ति योग- भक्ति का योग। भगवान् के प्रति भक्ति । इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है। और ज्ञान योग- ज्ञान का योग अर्थात ज्ञान अर्जित करने का योग। भगवत गीता के छठे अध्याय में बताये गए सभी योग जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। भगवद्गीता में योग के बारे में बताया गया है कि – सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते। अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। दुसरे शब्दों में कहा जाए तो योग मनुष्य को सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि परिस्थितिओं में सामान आचरण की शक्ति प्रदान करता है। भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में एक स्थल पर कहा है ‘योगः कर्मसु कौशलम’ अर्थात योग से कर्मो में कुशलता आती हैं। वास्तव में जो मनुष्य योग करता है उसका शरीर, मन और दिमाग तरोताजा रहता है। और मनुष्य प्रत्येक काम मन लगाकर करता है।

‘सूर्य नमस्कार’ व ‘ओम’ उच्चारण का कुछ संगठन विरोध करते रहे हैं। असल में कहा जाए तो ‘ओम’ शब्द योग के साथ जुड़ा हुआ है। इसे विवाद में तब्दील करना दुर्भागयपूर्ण है। लेकिन इसे हर किसी पर थोपा भी नहीं जा सकता। इसलिए योग करते समय लोगों को ‘ओम’ उच्चारण को अपनी धार्मिक मान्यता की आजादी के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। अगर किसी का धर्म ओम उच्चारण की आजादी नहीं देता तो उन्हें बिना ओम जाप के योग करना चाहिए। लेकिन योग को किसी एक धर्म से जोडकर विवाद पैदा नहीं करना चाहिए। आज के समय में योग को भारत के जन-जन तक योग को पहुँचाने में  अनेकों महापुरुषों का अहम् योगदान है। इनके योग के क्षेत्र में योगदान की वजह से ही आज भारत के घर-घर में प्रतिदिन योग होता है।

भगवद्गीता के अनुसार – तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम। अर्थात् कर्त्व्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है। योग को सभी लोगों को सकारात्मक भाव से लेना चाहिए। कोई भी धर्म-सम्प्रदाय योग की मनाही नहीं करता। इसलिए लोगों को योग को विवाद में नहीं घसीटना चाहिए। योग बुध्दि कुशग्र बनाता है और संयम बरतने की शक्ति देता है। योग की जितनी धार्मिक मान्यता है। उतना ही योग स्वस्थ्य शरीर के लिए जरूरी है। योग से शरीर तो स्वस्थ्य रहता है ही साथ ही साथ योग चिंता के भाव को कम करता है। और मनोबल भी मजबूत करता है। योग मानसिक शान्ति प्रदान करता है और जीवन के प्रति उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है। योग मनुष्य में सकारात्मकता तो बढाता है ही, साथ ही साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। इसलिए लोगों को इस तनाव भरे जीवन से मुक्ति पाने के लिए योग करना चाहिए। और दूसरे लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए। जिससे कि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके।

Yoga vs Gym


एक्सरसाइज पर भारी पड़ा योग :

प्रतिष्ठित मैनेजमेंट कॉलेज आईआईएम की पत्रिका विकल्प में 2010 में योग पर एक लेख छपा था |
लेख में कहा गया है कि योग,शारीरिक व्यायाम से ज्यादा बेहतर है,योग करने वालों पर तनाव हावी नहीं होता है|
एक्सरसाइज करने वालों के साथ उल्टा होता है|
आईआईएम अहमदाबाद की पत्रिका विकल्प में छपा यह लेख एक निजी कंपनी के 84 अधिकारियों पर किए गए शोध पर आधारित है,शोध में ग्रासिम इंडस्ट्रीज के 84 अधिकारियों दो समूहों में बांटा गया,42 एक तरफ, 42 दूसरी तरफ|

एक ग्रुप को रोज 75 मिनट योग कराया गया.
दूसरे ग्रुप को इतने ही समय प्रतिदिन मशीनी और दूसरी तरह के शारीरिक व्यायाम कराए गए|शोध से पहले सभी प्रतिभागियों का ब्लड प्रेशर, शुगर और बॉडी मास इंडेक्स नापा गया. महीने भर तक चले प्रयोग के बाद आए नतीजों में योग हर तरह से व्यायाम पर भारी पड़ा.गुजरात के शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव हंसमुख अधिया कहते हैं, ''योग करने वाले समूह के तनाव का स्तर काफी गिर चुका था जबकि शारीरिक व्यायाम करने वालों के तनाव का स्तर बढ़ा.दफ्तर में उनकी मानसिक स्थिति पहले से ज्यादा तनावपूर्ण हो गई.''

शोध के मुताबिक बीमारियों की जड़ अक्सर दफ्तर से शुरू होती है.ऑफिस के तनाव का मानसिक और शारीरिक व्यवहार पर नकारात्मक असर पड़ता है.धीरे धीरे इसकी वजह से जीवनशैली बदलने लगती है और ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन और शुगर जैसी बीमारियां होने लगती हैं.विकल्प के मुताबिक तनाव संबंधी बीमारियों के चलते हर साल अमेरिकियों को 300 अरब डॉलर इलाज पर खर्चने पड़ते हैं.

भारत के दफ्तरों में काम का तनाव कुछ कम नहीं है. योग से दफ्तर के तनाव को जोड़कर किया गया यह पहला शोध है. आईआईएम अहमदाबाद ने भारत के कॉरपोरेट जगत को सलाह दी है कि पैसे की खनखनाहट के बीच उन्हें योग की शांति में भी जाना चाहिए.
शोध में यह बात सामने आई कि आज कंपिनयों में कर्मचारी और अधिकारी जॉब बर्न आउट एवं तनाव से व्यापक रूप से प्रभावित हैं,जिसका दुष्परिणाम  यह है कि कंपनी की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता में गिरावट आती है,किसी भी संस्था,आफिस,कंपनी या कॉर्पोरेट जगत में कार्यरत लोग यदि मानसिक रूप से रुग्ण होंगे तो उनका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा जिससे वो अपना पूर्ण योगदान नहीं दे पाएंगे| परिणामस्व उनकी निर्णय लेनी की क्षमता,कार्य के प्रति दूरगामी सोच,भावी योजना का क्रियान्वयन, अपने अधिनस्थ कर्मचारियों के साथ सवांद,कार्य के प्रति निष्ठा एवं ईमानदारी आदि आदि पर परोक्ष या अपरोक्ष प्रभाव पड़ेगा | 

दूसरे ऐसे लोंगों का पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होगा क्योंकि ये लोग कार्यलय में उपजी बीमारी से घर पर भी नहीं बच पाएंगे जिससे इनका घर पर किया आचरण इनकी धीरे धीरे खुशियों में ग्रहण लगाना शुरू कर देगा |
आईये योग विज्ञान को अपनी रोजाना की दिनचर्या में शामिल करके एक स्वस्थ, खुशहाल एवं प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करने का संकल्प लेते हैं,कम से कम आधा घंटा तो अवस्य इस योग विधा से अपने को जोड़ने का नेक एवं पूण्य कर्म करने का नियम तो लेना ही होगा तब निश्चित रूप से  घर,समाज और राष्ट्र   स्वास्थ्य की पावन धारा से सिंचित होकर योग विज्ञान को एक बहुआयामी हथियार की तरह अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना सीख जाएंगे |

सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

World is always uncertain

जब तुम चेतना की निश्चितता को समझ लेते हो, तब तुम संसार की अनिश्चितता के साथ आराम से रह सकते हो। प्रायः व्यक्ति इसका बिल्कुल विपरीत करते हैं। वे संसार के प्रति तो निश्चित रहते हैं पर ईश्वर के प्रति अनिश्चित रहते हैं। जो अविश्वसनीय है, उस पर वे विश्वास करते हैं और फिर दुःखी हो जाते हैं। 

अनिश्चितता स्थिरता के लिए लालसा पैदा करती है और इस संसार में परम स्थायी है- आत्मा।

संसार परिवर्तनशील है, आत्मा अपरिर्वतनशील। तुम्हें अपरिवर्तनशीलता पर विश्वास रखना है और परिवर्तन को स्वीकार करना है। यदि तुम निश्चित हो कि सब-कुछ 'अनिश्चित' है, तब तुम मुक्त हो। अज्ञानता के कारण अनिश्चितता, तनाव और चिंता लाती है। 

सजगता के साथ अनिश्चितता, चेतना की उन्नत अवस्था और एक अटल मुस्कान लाती है !

#संसार

Hindi

होम पेज @योगअनुराग
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हम नियमित रूप से योग और ध्यान सत्र आयोजित कर रहे हैं और 2011 से लगातार गूगल खोज में 5 स्टार रेटिंग प्राप्त कर रहे हैं । हमारे सत्र या किसी अन्य जांच में शामिल होने के लिए 

निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं:
ऑनलाइन सत्र  जो आप दुनिया में कहीं भी कभी भी ले सकते हैं। आपको अपने फोन को छोड़कर इसके लिए ज्यादा आवश्यकता नहीं है। कई देशों में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के दौरान विशेष रूप से उपयोगी है।  खार और आसपास के विभिन्न स्थानों पर
समूह सत्र नियमित रूप से चल रहे हैं। आप वहां शामिल हो सकते हैं या अपने समाज, क्षेत्र में अपना खुद का समूह बना सकते हैं।  
व्यक्तिगत गृह सत्र व्यक्तिगत ध्यान और विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ अपने निवास के आराम में।  
कॉर्पोरेट सत्र  अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए हमारे पास कई कंपनियों के साथ इस तरह के सत्र आयोजित करने का अनुभव है।
इसके अलावा हमारे पास स्कूल, कॉलेज और नशामुक्ति केंद्रों में सत्र आयोजित करने का भी अनुभव है।

आप हमें हमें फ़ॉलो या मैसेज कर सकते हैं :

हम   आवश्यकता होने पर जल नीती  और अन्य शत कर्मों के अलावा सत्र में नियमित रूप से  ध्यान, प्राणायाम भी सिखाते हैं  । सुबह और शाम दोनों समय सत्र चल रहा है। सप्ताह में इसके 5 दिन। प्रत्येक सत्र की अवधि 40-45 मिनट है। दूरी, समय स्लॉट और समूह के आकार के आधार पर मासिक शुल्क उचित है। कुछ स्थानों पर जमुना अपार्टमेंट, टीडीआई वेलिंगटन हाइट्स, सनी एन्क्लेव, शिवालिक शहर, एसबीपी घर, एक्मे हाइट्स आदि हैं। नवीनतम स्थानों या अन्य विवरणों को जानने के लिए, आप हमें व्हाट्सएप  या +91 62832 66268 पर कॉल कर सकते हैं ।

आज के तनाव भरे जीवन में योग कितना प्रासंगिक है। योग के फायदों से आज हर कोई वाकिफ है। के रूप में यह न केवल स्वस्थ शरीर होने में मदद करता है बल्कि मन में शांति और संतुलन भी लाता है। जो आज के जीवन में इतना प्रासंगिक है, जहां लोगों के पास आक्रामकता, जीवन शैली, आर्थिक और सहकर्मी दबाव, जंक फूड और समय की कमी के कारण इतनी आक्रामकता, तनाव, तनाव है।

योग: चित्त वृत्ति निरोध:॥ योग शारीरिक लाभ के अलावा आपके दिमाग को शांत करने में मदद करता है। आप अपनी पीठ दर्द से छुटकारा पाने के लिए योग का उपयोग कर सकते हैं या अपने ध्यान और मन की शांति में सुधार कर सकते हैं या आप इसे परमात्मा की सीढ़ी के रूप में उपयोग कर सकते हैं।

हमारे योग प्रशिक्षक अनुराग शर्मा सरकारी प्रमाणित योग प्रशिक्षक हैं। वह 2001 से नियमित रूप से योग और ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं और 2011 से अध्यापन कर रहे हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग, विपासना केंद्र, पतंजलि, चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ योग और चंडीगढ़ प्रशासन सहित विभिन्न संगठनों से योग और ध्यान सीखा है। उन्होंने खार और मोहाली के विभिन्न सरकारी स्कूलों और निजी कॉलेजों में योग और ध्यान सिखाया है। साथ ही चंडीगढ़ के विभिन्न अस्पतालों में पीजीआई ड्रग एंड अल्कोहल डे एडिक्शन सेंटर सहित एक वर्ष के लिए साप्ताहिक सत्र आयोजित किए गए। वह विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में समय-समय पर कर्मचारियों के लिए कॉर्पोरेट सत्र आयोजित करता है।

हर साल वह चंडीगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम के लिए प्रतिभागियों को तैयार करने के लिए मास्टर योग ट्रेनर के रूप में चंडीगढ़ प्रशासन के लिए भी काम करता है। वर्तमान में वह खार और आसपास के आवासीय समाजों में नियमित योग सत्र ले रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप या उसे +91 62832 66268 पर कॉल करें। 

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निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं:
ऑनलाइन सत्र  जो आप दुनिया में कहीं भी कभी भी ले सकते हैं। आपको अपने फोन को छोड़कर इसके लिए ज्यादा आवश्यकता नहीं है। कई देशों में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के दौरान विशेष रूप से उपयोगी है।  खार और आसपास के विभिन्न स्थानों पर
समूह सत्र नियमित रूप से चल रहे हैं। आप वहां शामिल हो सकते हैं या अपने समाज, क्षेत्र में अपना खुद का समूह बना सकते हैं।  व्यक्तिगत ध्यान और विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ अपने निवास के आराम में
व्यक्तिगत गृह सत्र ।  अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए
कॉर्पोरेट सत्र । हमारे पास कई कंपनियों के साथ इस तरह के सत्र आयोजित करने का अनुभव है।
इसके अलावा हमारे पास स्कूल, कॉलेज और नशामुक्ति केंद्रों में सत्र आयोजित करने का भी अनुभव है।

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हम   आवश्यकता होने पर जल नीती  और अन्य शत कर्मों के अलावा सत्र में नियमित रूप से  ध्यान, प्राणायाम भी सिखाते हैं  । सुबह और शाम दोनों समय सत्र चल रहा है। सप्ताह में इसके 5 दिन। प्रत्येक सत्र की अवधि 40-45 मिनट है। दूरी, समय स्लॉट और समूह के आकार के आधार पर मासिक शुल्क उचित है। कुछ स्थानों पर जमुना अपार्टमेंट, टीडीआई वेलिंगटन हाइट्स, सनी एन्क्लेव, शिवालिक शहर, एसबीपी घर, एक्मे हाइट्स आदि हैं। नवीनतम स्थानों या अन्य विवरणों को जानने के लिए, आप हमें WhatsApp पर कॉल कर सकते हैं या +91 62832 66268 पर कॉल कर सकते हैं 

 आज के तनाव भरे जीवन में योग कितना प्रासंगिक है। योग के फायदों से आज हर कोई वाकिफ है। के रूप में यह न केवल स्वस्थ शरीर होने में मदद करता है बल्कि मन में शांति और संतुलन भी लाता है। जो आज के जीवन में इतना प्रासंगिक है, जहां लोगों के पास आक्रामकता, जीवन शैली, आर्थिक और सहकर्मी दबाव, जंक फूड और समय की कमी के कारण इतनी आक्रामकता, तनाव, तनाव है।

योग: चित्त वृत्ति निरोध: त्ति योग शारीरिक लाभ के अलावा आपके दिमाग को शांत करने में मदद करता है। आप अपनी पीठ दर्द से छुटकारा पाने के लिए योग का उपयोग कर सकते हैं या अपने ध्यान और मन की शांति में सुधार कर सकते हैं या आप इसे परमात्मा की सीढ़ी के रूप में उपयोग कर सकते हैं।

हमारे योग प्रशिक्षक अनुराग शर्मा सरकारी प्रमाणित योग प्रशिक्षक हैं। वह 2001 से नियमित रूप से योग और ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं और 2011 से अध्यापन कर रहे हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग, विपासना केंद्र, पतंजलि, चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ योग और चंडीगढ़ प्रशासन सहित विभिन्न संगठनों से योग और ध्यान सीखा है। उन्होंने खार और मोहाली के विभिन्न सरकारी स्कूलों और निजी कॉलेजों में योग और ध्यान सिखाया है। साथ ही चंडीगढ़ के विभिन्न अस्पतालों में पीजीआई ड्रग एंड अल्कोहल डे एडिक्शन सेंटर सहित एक वर्ष के लिए साप्ताहिक सत्र आयोजित किए गए। वह विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में समय-समय पर कर्मचारियों के लिए कॉर्पोरेट सत्र आयोजित करता है।

हर साल वह चंडीगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम के लिए प्रतिभागियों को तैयार करने के लिए मास्टर योग ट्रेनर के रूप में चंडीगढ़ प्रशासन के लिए भी काम करता है। वर्तमान में वह खार और आसपास के आवासीय समाजों में नियमित योग सत्र ले रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप या उसे +91 62832 66268 पर कॉल करें। 

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How to eat (in Hindi)


भोजन के संबंध में...........✍🏻
जो हम खाते हैं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है
कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते हैं। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

आप क्या खाते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दशा में खाते हैं। आप आनंदित खाते हैं, या दुखी, उदास और चिंता से भरे हुए खाते हैं। अगर आप चिंता से खा रहे हैं, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी पाय़जनस होंगे, जहरीले होंगे। और अगर आप आनंद से खा रहे हैं, तो कई बार संभावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाए। इसकी बहुत संभावना है। आप कैसे खाते हैं, किस चित्त-दशा में?

हम तो चिंता में ही चौबीस घंटे जीते हैं। तो हम जो भोजन करते होंगे, वह कैसे पच जाता है यह मिरेकल है, यह बिलकुल चमत्कार है। यह भगवान कैसे करता है, हमारे बावजूद करता है यह। हमारी कोई इच्छा उसके पचने की नहीं है। यह कैसे पच जाता है, यह बिलकुल आश्चर्य है! और हम कैसे जिंदा रह लेते हैं, यह भी एक आश्चर्य है! भाव-दशा--आनंदपूर्ण, प्रसादपूर्ण निश्चित ही होनी चाहिए।

लेकिन हमारे घरों में हमारे भोजन की जो टेबल है या हमारा चौका जो है, वह सबसे ज्यादा विषादपूर्ण अवस्था में है। पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती है कि पति कब घर खाने आ जाए। चौबीस घंटे का जो भी रोग और बीमारी इकट्ठी हो गई है, वह पति की थाली पर ही उसकी निकलती है। और उसे पता नहीं कि वह दुश्मन का काम कर रही है। उसे पता नहीं, वह जहर डाल रही है थाली में।

और पति भी घबड़ाया हुआ, दिन भर की चिंता से भरा हुआ थाली पर किसी तरह भोजन को पेट में डाल कर हट जाता है! उसे पता नहीं है कि एक अत्यंत प्रार्थनापूर्ण कृत्य था, जो उसने इतनी जल्दी में किया है और भाग खड़ा हुआ है। यह कोई ऐसा कृत्य नहीं था कि जल्दी में किया जाए। यह उसी तरह किए जाने योग्य था, जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है, जैसे कोई प्रार्थना करने बैठता है, जैसे कोई वीणा बजाने बैठता है। जैसे कोई किसी को प्रेम करता है और उसे एक गीत सुनाता है।
यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। वह शरीर के लिए भोजन पहुंचा रहा था। यह अत्यंत आनंद की भाव-दशा में ही पहुंचाया जाना चाहिए। यह एक प्रेमपूर्ण और प्रार्थनापूर्ण कृत्य होना चाहिए।

जितने आनंद की, जितने निश्चिंत और जितने उल्लास से भरी भाव-दशा में कोई भोजन ले सकता है, उतना ही उसका भोजन सम्यक होता चला जाता है।
हिंसक भोजन यही नहीं है कि कोई आदमी मांसाहार करता हो। हिंसक भोजन यह भी है कि कोई आदमी क्रोध से आहार करता हो। ये दोनों ही वायलेंट हैं, ये दोनों ही हिंसक हैं। क्रोध से भोजन करते वक्त, दुख में, चिंता में भोजन करते वक्त भी आदमी हिंसक आहार ही कर रहा है। क्योंकि उसे इस बात का पता ही नहीं है कि वह जब किसी और का मांस लाकर खा लेता है, तब तो हिंसक होता ही है, लेकिन जब क्रोध और चिंता में उसका अपना मांस भीतर जलता हो, तब वह जो भोजन कर रहा है, वह भी अहिंसक नहीं हो सकता है। वहां भी हिंसा मौजूद है।

No mind story in Hindi

निर्विचार होने की कला : 

चीन की प्रसिद्ध कथा है कि एक बहुत बड़ा शिकारी था। उसने अपने सम्राट से कहा कि अब मैं चाहता हूं कि आप घोषणा कर दें कि मैं पूरे चीन का प्रथम शिकारी हूं। मुझसे बड़ा कोई धुनर्विद नहीं है। अगर कोई हो, तो मैं चुनौती लेने को तैयार हूं।

सम्राट भी जानता था कि उससे बड़ा कोई धनुर्विद नहीं है। घोषणा करवा दी गई, डुंडी पिटवा दी गई सारे साम्राज्य में कि अगर किसी को चुनौती लेनी हो, तो चुनौती ले ले। नहीं तो घोषणा तय हो जाएगी कि यह व्यक्ति राज्य का सबसे बड़ा धनुर्धर है।

एक बूढ़े फकीर ने आकर कहा कि भई, इसके पहले कि घोषणा करो, मैं एक व्यक्ति को जानता हूं, जो चुनौती तो नहीं लेगा, उसको शायद तुम्हारी घोषणा पता भी नहीं चली, क्योंकि वह दूर पहाड़ों में रहता है। उसको पता ही नहीं चलेगा कि तुम्हारी डुंडी वगैरह पिटी। वहां तक कोई जाएगा भी नहीं। और वह अकेला एकांत में वर्षों से रहता है। और मैं लकड़हारा हूं और उस जंगल से लकड़ियां काटता था, जब जवान था। मैं जानता हूं कि उसके मुकाबले कोई धनुर्विद नहीं है। इसलिए इसके पहले कि घोषणा की जाए, इस धनुर्विद को कहो कि जाए, उस फलां-फलां बूढ़े को खोजे। अगर वह बूढ़ा जान जाए कि यह धनुर्विद है, तो ही समझना। नहीं तो यह कुछ भी नहीं है।

वह धनुर्विद गया उस बूढ़े की तलाश में। बड़ी मुश्किल से तो उस पहाड़ पर पहुंच पाया। एक गुफा में वह बूढ़ा था। बहुत वृद्ध था--कोई एक सौ बीस वर्ष उसकी उम्र होगी। कमर उसकी झुक गई थी बिलकुल। झुक कर चलता था। यह क्या धनुर्विद होगा! पर आ गया था इतनी दूर, तो उसने कहा कि महानुभाव, मैं फलां-फलां व्यक्ति की तलाश में आया हूं। निश्चय ही आप वह नहीं हो सकते, क्योंकि आपकी देह देखकर ही लगता है कि आप क्या धनुष उठा भी नहीं सकेंगे! धनुर्विद आप क्या होंगे! आप कमर सीधी कर नहीं सकते। आपकी कमर ही तो प्रत्यंचा हुई जा रही है! तो जरूर कोई और होगा। मगर आपसे पता चल जाए शायद। आप इस पहाड़ पर रहते हैं। जानते हैं आप यहां कोई फलां नाम का धनुर्विद?

वह बूढ़ा हंसा। उसने कहा कि वह व्यक्ति मैं ही हूं। और तुम चिंता न करो मेरी कमर की। और तुम यह भी चिंता मत करो कि मैं हाथ में धनुष ले सकता हूं या नहीं। धनुष जो लेते हैं, वे तो बच्चे हैं। मैं तो बिना धनुष हाथ में लिए, और शिकार करता हूं।

वह तो आदमी बहुत घबड़ाया। उसने कहा कि मार डाला! बिना धनुष-बाण के कैसे शिकार? उसने कहा, आओ मेरे साथ।

वह बूढ़ा उसको लेकर चला। वह गया एक पहाड़ के किनारे जहां एक चट्टान दूर खड्ड में निकली थी, कि उस चट्टान से अगर कोई फिसल जाए, तो हजारों फीट का गङ्ढ था, उसका पता ही नहीं चलेगा। उसका कचूमर भी नहीं मिलेगा कहीं खोजे से! हड्डी-हड्डी चूरा-चूरा हो जाएगी। वह बूढ़ा चला उस चट्टान पर, और जाकर बिलकुल किनारे पर खड़ा हो गया। उसकी अंगुलियां चट्टान के बाहर झांक रही हैं पैर की। और कमर उसकी झुकी हुई! और उसने इससे कहा कि तू भी आ जा।

यह तो गिर पड़ा आदमी वहीं! यह तो उस चट्टान पर खड़ा हुआ, तो इसको चक्कर आने लगा। इसने नीचे जो गङ्ढा देखा, इसके हाथ-पैर कंपने लगे। और वह बूढ़ा अकंप वहां चट्टान पर सधा हुआ खड़ा है। आधे पैर बाहर झांक रहे हैं! अब गिरा, तब गिरा! इसने कहा कि महाराज, वापस लौट आओ! मुझे हत्या का भागीदार न बनाओ!

उसने कहा तू, फिक्र ही मत कर। तू कैसा धनुर्धर है! तुझे अभी मृत्यु का डर है? तो तू क्या खाक धनुर्धर है। और तू कितने पक्षी मार सकता है अपने धनुष से? देख ऊपर आकाश में पक्षी उड़ रहे हैं।

उसने कहा, अभी मैं कहीं नहीं देख सकता। इस चट्टान पर इधर-उधर देखा; कि गए! इधर मैं धनुष भी नहीं उठा सकता। और निशाना वगैरह लगाना तो बात ही दूर है! मेरी प्रार्थना है कि कृपा करके वापस लौट आइए। यह तो गया भी नहीं उतनी दूर तक!

उस बूढ़े ने कहा कि देख। मैं न तो धनुष हाथ लेता हूं, न बाण; लेकिन यह पूरी पक्षियों की कतार मेरे देखने से नीचे गिर जाएगी। और उसने पक्षियों की तरफ देखा और पक्षी गिरने लगे। यह धनुर्विद उसके चरणों में गिर पड़ा और कहा कि मुझे यह कला सिखाओ। यह क्या माजरा है! तुमने देखा और पक्षी गिरने लगे! उसने कहा, इतना विचार काफी है। अगर निर्विचार होओ, तो इतना विचार काफी है। इतना कह देना कि गिर जा, बहुत है। पक्षी की क्या हैसियत कि भाग जाए! भाग कर जाएगा कहां?

वर्षों वह धुनर्विद उसके पास रहा। निर्विचार होने की कला सीखी। भूल ही गया धनुष-बाण। यहां धनुष-बाण का कोई काम ही न था। और जब निर्विचार हो गया, तो उसने धनुष-बाण तोड़ कर फेंक दिया। सम्राट से जा कर कहा कि बात ही छोड़ दो। जिस आदमी के पास मैं होकर आया हूं, उसको पार करना असंभव है। हालांकि थोड़ी-सी झलक मुझे मिली। बस, उतनी मिल गई, वह भी बहुत है। धनुष-बाण, मेरे गुरु ने कहा है, कि बच्चों का काम है। जब कोई सचमुच धनुर्धर हो जाता है, तो धनुष-बाण तोड़ देता है। और जब कोई सचमुच संगीतज्ञ हो जाता है, तो वीणा तोड़ देता है। फिर क्या वीणा पर संगीत उठाना, जब भीतर का संगीत उठे!
  
ओशो

No benefit of yoga (Hindi)

प्रश्न : कभी-कभी साधना करते करते अचानक बहुत सारी नेगेटिविटी आ जाती है, लगता है कि सब छोड़ दिया जाए इतनी मेहनत के बाद भी कुछ अच्छा नहीं हो रहा है। क्या फायदा इस साधना का  ? ?
 
तो मेरे प्यारों ! चिंता मत करो , खुश हो जाओ  क्योंकि जन्म-जन्म के संचित कर्म नष्ट हो रहे हैं, जो कष्ट बड़े रूप में होने थे वो सब छोटे रूप में ही बाहर आ रहे हैं और आपकी साधना सफल हो रही है।
यही समय है आपकी आस्था और विश्वास के परीक्षण का। इस समय डिगना नहीं अपने मार्ग से।
पा जाओगे जो चाहते हो। विश्वास करो।
भाव रखो अपने शिव शिवा पर
अपने सिद्ध गुरु और गुरुमंडल पर ।।
 
 ~: श्री श्री रवि शंकर