When we are joyful, we do not look for perfection. If you are looking
for perfection then you are not at the source of joy. Joy is the
realization that there is no vacation from wisdom. The world appears
imperfect on the surface but underneath, all is perfect. Perfection
hides, imperfection shows off. The wise will not dwell on the surface
but will probe into the depths. The things you see are not blurred, it is
your vision that is blurred. Infinite actions exist in the wholeness of
consciousness, and yet consciousness remains perfect, untouched.
Realize this now and be at home.
Legendary is the love that withstands rejection. It will be free of anger
and ego. Legendary is the commitment that withstands humiliation. It
will be one-pointed and will reach the goal. Legendary is the wisdom
that withstands turbulence. It will be integrated into life. Legendary is
the faith that withstands a million chances of doubt. It will bring
perfection - siddhis. Legendary are the events that withstand time.
They will become morals for millions.
Q. I find it difficult to believe that all real world day to day problems will get resolved by love or compassion alone. How would you deal with this perspective?
Gurudev: I get your point. Think from your personal experience, what type of boss would you prefer, someone who always has a frown on their face, who puts pressure on you? It does not mean that as a leader, you should keep smiling in all situations. It only means that you should use anger sparingly. Sometimes, just a little expression of anger on your face gets a lot of work done much faster.
You should rather make people feel comfortable around you and inspire them by smiling with them and being with them; understanding their point of view, creating a sense of belongingness in them, rather than run the business operating on fear psychosis.
गायत्री के अक्षरों का आपसी गुंथन, स्वर-विज्ञान और शब्दशास्त्र के ऐसे रहस्यमय आधार पर हुआ हैं कि उसके उच्चारण मात्र से सूक्ष्म शरीर में छिपे हुए अनेक शक्ति केंद्र अपने आप जागृत होते हैं| सूक्ष्म देह के अंग-प्रत्यंगों में अनेक चक्र उपचक्र, ग्रंथियाँ, मातृकायें, उपत्यकायें, भ्रमर मेरु आदि ऐसे गुप्त संस्थान होते हैं जिनका विकास होने से साधारण-सा मनुष्य प्राणी अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता हैं|
गायत्री मंत्र का उच्चारण किस क्रम से होता हैं उससे जिह्वा, दाँत, कंठ, तालू, ओष्ठ, मूर्धा आदि से एक विशेष प्रकार के ऐसे गुप्त स्पंदन होते हैं जो विभिन्न शक्ति-केंद्रों तक पहुँचकर उनकी सुषुप्ति हटाते हुए चेतना उत्पन्न कर देते हैं| इस प्रकार जो कार्य योगी लोग बड़ी कष्टदायक साधनाओं और तपस्याओं से बहुत काल में पूरा करते हैं वह महान कार्य बड़ी सरल रीति से गायत्री के जप मात्र से स्वल्प समय में ही पूरा हो जाता हैं|
साधक और ईश्वर सत्ता गायत्री माता के बीच में बहुत दूरी हैं, लंबा फासला हैं| इस दूरी एवं फासले को हटाने का मार्ग इन २४ अक्षरों से मन्त्र से होता हैं| जैसे जमीन पर खड़ा हुआ मनष्य सीढ़ी की सहायता से ऊँची छत पर पहुँच जाता हैं वैसे ही गायत्री का उपासक इन २४ अक्षरों की सहायता से क्रमश: एक-एक भूमिका पर करता हुआ, ऊपर चढ़ता हैं और माता के निकट पहुँच जाता है।
गायत्री का एक-एक अक्षर एक-एक धर्म शास्त्र है। इन अक्षरों को व्याख्या स्वरूप ब्रह्माजी ने चारों वेदों की रचना की और उनका अर्थ बताने के लिए ऋषियों ने अन्य धर्म ग्रन्थ बनाये। संसार में जितना भी ज्ञान-विज्ञान है वह बीज रूप से इन २४ अक्षरों में भरा हुआ है। एक-एक अक्षर का अर्थ एवं रहस्य इतना अधिक है कि उसे जानने में एक-एक जीवन लगाया जाना भी कम है। इन २४ अक्षरों के तत्व-ज्ञान को जो जानता है उसे इस संसार में और कुछ जानने योग्य नहीं रहता।
गायत्री सबसे बड़ा मन्त्र है। इससे बड़ा और कोई नहीं। जो कार्य संसार के अन्य किसी मन्त्र से हो सकता है वह गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इससे वेदोक्त दक्षिण मार्ग और तन्त्रोक्त वाम मार्ग दोनों ही प्रकार की साधना हो सकती हैं।
There are three things: the Self, the senses, and the object, or the world. And there are three words: sukha, pleasure; dukha, sorrow; and sakha, companion. These have one thing in common: "kha," which means "senses."
The Self through the senses experiences the world. When the senses are with the Self, that is pleasure (sukha), because the Self is the source of all joy or pleasure. When the senses are away from the Self (dukha) -- in the mud, lost in the object -- that is misery. Mud, misery, mind -- they are very close.
Self --- Senses ("Kha") --- World
--- Joy (Sukha) Sorrow (Dukha) ---
Self is the nature of joy. In any pleasant experience, you close your eyes; you smell a nice flower, or you taste or touch something. So sukha is that which takes you to the Self. Dukha is that which takes you away from the Self. Sorrow simply means that you are caught up in the object, which goes on changing, instead of focussing on the Self.
All the sense objects are just a diving board to take you back to the Self.
Sa-kha, companion, means: "He is the senses." Sakha is one who has become your senses, who is your senses. If you are my senses, it means I get Knowledge through you; you are my sixth sense. As I trust my mind, so I trust you. A friend could be just an object of the senses, but a sakha has become the very senses.
The sakha is the companion who is there in both the experiences of the dukha and of sukha. It means one who leads you back to the Self. If you are stuck in an object, that wisdom which pulls you back to the Self is sakha.
Knowledge is your companion and your companion is Knowledge. And the Master is nothing but the embodiment of Knowledge. So sakha means, "He is my senses, I see the world through that wisdom, through Him."
If your sense is the Divine, then you see the whole world through the Divinity.
Your head will be in the mud in a few years;
Don't put mud in your head while you are still alive.
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र ०२०
२४ अक्टूबर,१९९५
मॉन्ट्रियल आश्रम, कैनाडा
सखा-तुम्हारी विश्वसनीय इन्द्रिय
तीन विषय है: आत्मा, इन्द्रियाँ एवं वस्तु (संसार) और तीन शब्द है: सुख, दुःख, और सखा।
इस तीनो ही शब्दों में एक समानता है- 'ख', जिसका अर्थ है इन्द्रियाँ।
आत्मा इन्द्रियों के द्वारा संसार का अनुभव करती है। जब इन्द्रियाँ आत्मा के साथ रहती है तब सुख होता हैं (क्योंकि आत्मा सुख और आनन्द का स्रोत है)
जब इन्द्रियाँ आत्मा से विमुख हो, भौतिक विषयों के दलदल में फ़स जाती है, तब दुःख होता है। यही दुःख है।
संसार आत्मा
इन्द्रियाँ ('ख')
दुःख सुख
आत्मा का स्वाभाव ही आनन्द हैं। सभी इन्द्रियाँ आत्मा की ओर उड़ान भरने के लिए हैं। किसी भी सुखद अनुभूति में तुम आँखे मूंद लेते हो- किसी सुगन्धित फूल को सूंघते हो तब या कोई स्वादिष्ट खाना चखते हो, अथवा किसी वस्तु को स्पर्श करते हो। सुख वह है जो आत्मा की ओर ले जाता है।
दुःख आत्मा से विमुख करता है। दुःख का यही अर्थ है कि, तुम आत्मा पर केंद्रित होने के बदले विषय- वस्तु में फंसे हो, जो परिवर्तनशील है।
'स-खा' शब्द का अर्थ है "वह ही इन्द्रियाँ है"। सखा वह है जो तुम्हारी इन्द्रियाँ ही है। अर्थात तुम्हारे माध्यम से मुझे ज्ञान मिलता है, तुम मेरी छठी इन्द्रिय हो। जिस प्रकार मैं अपने मन पर विश्वास करता हूँ, उसी तरह तुम पर भी विशवास करता हूँ। एक मित्र इन्द्रियों की अनुभूति का विषय हो सकता है परन्तु 'सखा' स्वयं इन्द्रिय बन जाता है।
'सखा' वह साथी है जो सुख और दुःख दोनों अनुभवों में साथ रहता है। अर्थात सखा वह है जो तुम्हें आत्मा की ओर वापस ले जाता है। जब तुम किसी विषय- भोग में फ़स जाते हो,तब जो ज्ञान तुम्हें आत्मा की ओर वापस लता है, वही सखा है।
ज्ञान तुम्हारा साथी है और तुम्हारा साथी ज्ञान है।
गुरु ज्ञान का प्रतिरूप है। 'सखा' का अर्थ है,"वह मेरी इन्द्रियाँ है, मैं संसार को उसी ज्ञान के द्वारा, उनके माध्यम से देखता हूँ।"
कुछ वर्षो में तुम्हारा मस्तक मिटटी में होगा, जीते जी अपना सर कीचड़ से मत भरो।
गुरु की दृष्टि से देखो तो पूरा विश्व दिव्य दिखेगा।
In Sanskrit the word “Shalabh” stands for Locust or grasshopper which is a one type of insect, basically found in grass. While doing Shalabhasana the complete body shape seems like a locust or grasshopper structure thus this posture is additionally known as Locust pose. Shalabhasana advantages to strengthen back muscles and curing ailments like sciatica and back ache. This Asana is simple to do and suitable for everybody. This is the special Asana for the spine.
Steps of Shalabhasana
Lie down on your Stomach; place both hands underneath the thighs.
Breath in (inhale) and lift your right leg up, (your leg should not bend at the knee).
Your chin should rest on the ground.
Hold this position about ten to twenty seconds.
After that exhale and take down your leg in the initial position.
Similarly do it with your left leg.
Repeat this for five to seven times.
After doing it with the left leg, inhale and lift your both legs up (Your legs should not bend at the knees; lift your legs as much as you can).
With both legs repeat the process for two to four times.
Benefits of Shalabhasana
It is beneficial in all the disorders at the lower end of the spine.
Most helpful for backache and sciatica pain.
Useful for removing unwanted fats around abdomen, waist, hips and thighs.
Daily practice of this Asana can cures cervical spondylitis and spinal cord ailments.
Strengthening your wrists, hips, thighs, legs, buttocks, lower abdomen and diaphragm.
Toughens back muscles.
Precautions
Don’t practice this asana in case if any surgery has done. First of all practice Ardha Shalabhasana then practice entire Shalabhasana posture. Control your breathing while doing this pose.
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शलभासन (टिड्डी मुद्रा)
संस्कृत नाम:- शलभासन।
अर्थ :- टिड्डी या टिड्डी ।
संस्कृत में "शलभ" शब्द का अर्थ टिड्डी या टिड्डा है जो एक प्रकार का कीट है, जो मूल रूप से घास में पाया जाता है। शलभासन करते समय पूरे शरीर का आकार टिड्डे या टिड्डे की संरचना जैसा लगता है इसलिए इस मुद्रा को टिड्डी मुद्रा भी कहा जाता है। शलभासन पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करता है और साइटिका और पीठ दर्द जैसी बीमारियों को ठीक करता है। यह आसन करने में आसान है और सभी के लिए उपयुक्त है। यह रीढ़ के लिए विशेष आसन है।
शलभासन के चरण (टिड्डी मुद्रा) विधि
अपने पेट के बल लेट जाओ; दोनों हाथों को जाँघों के नीचे रखें।
सांस अंदर लें (श्वास लें) और अपने दाहिने पैर को ऊपर उठाएं, (आपका पैर घुटने पर नहीं झुकना चाहिए)।
आपकी ठुड्डी जमीन पर टिकी रहनी चाहिए।
इस पोजीशन में करीब दस से बीस सेकेंड तक रहें।
इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपने पैर को शुरुआती स्थिति में ले जाएं।
इसी तरह अपने बाएं पैर से भी करें।
इसे पांच से सात बार दोहराएं।
इसे बाएं पैर से करने के बाद सांस अंदर लें और अपने दोनों पैरों को ऊपर उठाएं (आपके पैर घुटनों पर नहीं झुकना चाहिए, अपने पैरों को जितना हो सके ऊपर उठाएं)।
दोनों पैरों से इस प्रक्रिया को दो से चार बार दोहराएं।
शलभासन के लाभ
यह रीढ़ के निचले सिरे के सभी विकारों में लाभकारी है।
कमर दर्द और साइटिका दर्द के लिए सबसे ज्यादा मददगार।
पेट, कमर, कूल्हों और जांघों के आसपास की अवांछित चर्बी को हटाने के लिए उपयोगी।
इस आसन के दैनिक अभ्यास से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस और रीढ़ की हड्डी के रोग ठीक हो सकते हैं।
अपनी कलाई, कूल्हों, जांघों, पैरों, नितंबों, पेट के निचले हिस्से और डायाफ्राम को मजबूत बनाना।
पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
एहतियात
यदि कोई सर्जरी हुई हो तो इस आसन का अभ्यास न करें। सबसे पहले अर्ध शलभासन का अभ्यास करें फिर संपूर्ण शलभासन मुद्रा का अभ्यास करें। इस आसन को करते समय अपनी श्वास पर नियंत्रण रखें।
Shashankasana imitates Hare pose or Rabbit pose in the final stage. It is one of the best yoga poses to control anger, tension, anxiety, and stress.
शशांकासन अंतिम चरण में हरे मुद्रा या खरगोश की मुद्रा का अनुकरण करता है। यह क्रोध, तनाव, चिंता और तनाव को नियंत्रित करने के लिए सबसे अच्छे योगों में से एक है। हिंदी स्पष्टीकरण के लिए आप इस पेज के नीचे जाएं।
Inhale and slowly raise the arms, keeping them straight.
Now, exhale and bend forwards.
The arms, trunk, and head should remain in one line.
The forehead and arms should rest on the floor in front of the knees.
Relax the whole body.
Inhale and exhale slowly.
Inhale and raise your arms up and slowly bring it down.
Shashankasana breathing
Inhale while raising the arms.
Exhale bends forwards.
Breathing should be deep and slow in the final position.
Now, inhale and raise your arms and come to the original position.
Top 10 benefits of Shashankasana
Shashankasana is a very simple asana with so many important benefits.
Stress: This asana acts like as a panacea for stress. It acts as a stress buster. Therefore, it is recommended that the pose should be performed religiously who has the problems of stress, anxiety, anger, tension, etc.
Back muscles: The practicing of this asana provides suitable stretch to the back muscles thereby releases pressure on the disc and good for the heath of backache.
Sciatica: Stretching, ensures separation among the individual vertebrae and makes supple to the back thus good for sciatica.
Back blood circulation: This yoga pose gives stretching to the back muscles, removes sluggish and depleted blood thereby increases the fresh flow of blood in the region.
Massage to abdominal organs: It provides suitable massage to the abdominal organs and helps to prevent constipation and indigestion.
Memory: Practicing of rabbit pose properly, ensures the smooth flow of blood in the skull region and effective in memory and concentration.
Sexual disorders: Those who are suffering from sexual disorders, should perform it regularly. It strengthens the pelvic region, good for women, and alleviates sexual disorders.
Relaxation: This is one of the few yoga poses, which brings quick relaxation and induces calmness and tranquility by regulating the adrenal glands.
Kidney: It helps to improve the function of the kidney, liver, and visceral organs.
Strengthens pelvic: It is good for the health of the pelvic region.
Shashankasana precautions and contradictions
Backache
Knee pain
Migraine
Abdominal injury
Shashankasana preparatory pose
Dandasana
Vajrasana
Stretching yoga
Shashankasana follow up pose
Supt Vajrasana
Shavasana
Stick asana
Important facts about Shashankasana
Level: Basic
Duration: 10 seconds to 3 minutes
Stretches: Back, pelvis, arms, thighs, abdomen
Strength: Back, Legs, pelvis, digestive system, sexual organs
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शशांकासन के विभिन्न नाम
शशांकासन:
चंद्रमा मुद्रा
खरगोश मुद्रा
हरे मुद्रा
शशांकासन के चरण- खरगोश की मुद्रा कैसे करें
वज्रासन में बैठें।
पीठ को सीधा करें।
सांस भरते हुए हाथों को सीधा रखते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठाएं।
अब सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें।
हाथ, धड़ और सिर एक ही पंक्ति में रहने चाहिए।
माथे और बाहों को घुटनों के सामने फर्श पर टिका देना चाहिए।
पूरे शरीर को आराम दें।
श्वास लें और धीरे-धीरे छोड़ें।
सांस भरते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और धीरे-धीरे नीचे लाएं।
शशांकासन श्वास
बाहों को ऊपर उठाते हुए श्वास लें।
सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें।
अंतिम स्थिति में श्वास गहरी और धीमी होनी चाहिए।
अब सांस लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और मूल स्थिति में आ जाएं।
शशांकासन के शीर्ष 10 लाभ
शशांकासन एक बहुत ही सरल आसन है जिसके कई महत्वपूर्ण लाभ हैं।
तनाव: यह आसन तनाव के लिए रामबाण की तरह काम करता है। यह स्ट्रेस बस्टर का काम करता है। इसलिए, यह अनुशंसा की जाती है कि मुद्रा को धार्मिक रूप से किया जाना चाहिए जिसे तनाव, चिंता, क्रोध, तनाव आदि की समस्या है।
पीठ की मांसपेशियां: इस आसन के अभ्यास से पीठ की मांसपेशियों को उपयुक्त खिंचाव मिलता है जिससे डिस्क पर दबाव कम होता है और पीठ दर्द के लिए अच्छा होता है।
कटिस्नायुशूल: स्ट्रेचिंग, व्यक्तिगत कशेरुकाओं के बीच अलगाव सुनिश्चित करता है और पीठ को लचीला बनाता है इस प्रकार कटिस्नायुशूल के लिए अच्छा है।
बैक ब्लड सर्कुलेशन: यह योग मुद्रा पीठ की मांसपेशियों को खिंचाव देती है, सुस्त और घटे हुए रक्त को हटाती है जिससे क्षेत्र में रक्त का ताजा प्रवाह बढ़ता है।
पेट के अंगों की मालिश: यह पेट के अंगों को उपयुक्त मालिश प्रदान करता है और कब्ज और अपच को रोकने में मदद करता है।
स्मृति: खरगोश की मुद्रा का ठीक से अभ्यास, खोपड़ी क्षेत्र में रक्त के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करता है और स्मृति और एकाग्रता में प्रभावी होता है।
यौन विकार: जो लोग यौन विकारों से पीड़ित हैं, उन्हें इसे नियमित रूप से करना चाहिए। यह श्रोणि क्षेत्र को मजबूत करता है, महिलाओं के लिए अच्छा है, और यौन विकारों को कम करता है।
विश्राम: यह कुछ योग मुद्राओं में से एक है, जो त्वरित विश्राम लाता है और अधिवृक्क ग्रंथियों को नियंत्रित करके शांति और शांति लाता है।
गुर्दा: यह गुर्दे, यकृत और आंत के अंगों के कार्य में सुधार करने में मदद करता है।
श्रोणि को मजबूत करता है: यह श्रोणि क्षेत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
Setu Bandhasana (Bridge Pose) The word Setu Bandha comes from the Sanskrit word “Setu” which means Bridge; and the meaning of Bandha, is Lock or bind, and Asana means Posture, pose or seat.
Pronunciation of Setubandhasana is SAY-tuh-bun-DHAHS-ana. This Pose called Setu Bandha because in this Asana when we try the pose of this Asana, our body looks like a bridge. Setu – Bridge; Bandha – Bind, Lock; Asana – Pose, Posture or seat. This yoga pose is pronounced as SAY-tuh-bun-DHAHS-ana.
English Name: – Bridge Pose.
Sanskrit Name: – Setu Bandha. (Spinal lift pose).
Other languages : सेतुबंधासन, ਸੇਤੁਬੰਧਾਸਨ, સેતુબંધાસન
After that bend or Fold your knees and keep your feet and hip distance apart on the floor.
Distance should be10-12 inches from your pelvis. Along with knees and ankles in a straight line.
Take your arms beside your body, and your palms should facing down.
Now inhaling, slowly lift your lower back, middle back and upper back off the floor.
Now gently roll in the shoulders; touch the chest to the chin without bringing the chin down, supporting your weight with your shoulders, arms, and feet.
Now feel your bottom firm up in this pose. Keep your Both thighs are parallel to each other and to the floor. You may interlace the fingers and push the hands on the floor to lift the torso a little more up, or you could support your back with your palms. Keep breathing normally and slowly. Remember to hold the posture for 30 seconds or one minute, and exhale as you gently release the pose.
Benefits of the Bridge Pose
Bridge Pose gives Strength to your back muscles.
It relieves the tired back instantly.
Stretches chest, neck, and spine.
Gives calmness to brain, reduce the level of anxiety, stress, and depression
Setu Bandhasana Opens up your lungs and reduces thyroid problems.
Improves digestion.
Good for women in menopause and menstrual pain.
Helpful in asthma, osteoporosis, and sinusitis high blood pressure.
This Yoga Pose calms the brain and rejuvenates your tired legs.
Cautions of the Bridge Pose
Do not try or avoid doing this pose if you are suffering from neck and back injuries.
At first be perfect in basic Asanas, once you perfect then try this Asana. If you are beginner than the master in basic Asanas after that try this Yoga Pose.
Do all the Asanas in under the supervision of yoga instructor.
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सेतु बंधासन
सेतु बंध शब्द संस्कृत शब्द "सेतु" से आया है जिसका अर्थ है पुल; और बंध का अर्थ है ताला या बाँध, और आसन का अर्थ है मुद्रा, मुद्रा या आसन।
सेतुबंधासन का उच्चारण SAY-tuh-bun-DHAHS-ana है। इस मुद्रा को सेतु बंध कहा जाता है क्योंकि इस आसन में जब हम इस आसन की मुद्रा को आजमाते हैं, तो हमारा शरीर एक पुल जैसा दिखता है। सेतु - पुल; बंध - बांध, ताला; आसन - मुद्रा, आसन या आसन। इस योग मुद्रा का उच्चारण SAY-tuh-bun-DHAHS-ana के रूप में किया जाता है।
अंग्रेजी नाम:- ब्रिज पोज।
संस्कृत नाम:- सेतु बंध। (स्पाइनल लिफ्ट पोज)।
अन्य भाषाएँ : सेतुबंधासन, ,
प्रारंभिक मुद्रा:- शवासन।
पोज के स्टेप्स
सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं।
इसके बाद अपने घुटनों को मोड़ें या मोड़ें और अपने पैरों और कूल्हे की दूरी को फर्श पर अलग रखें।
आपकी श्रोणि से दूरी 10-12 इंच होनी चाहिए। घुटनों और टखनों के साथ एक सीधी रेखा में।
अपनी बाहों को अपने शरीर के बगल में ले जाएं, और आपकी हथेलियां नीचे की ओर होनी चाहिए।
अब सांस भरते हुए धीरे-धीरे अपनी पीठ के निचले हिस्से, मध्य पीठ और ऊपरी पीठ को फर्श से ऊपर उठाएं।
अब धीरे से कंधों में रोल करें; अपने कंधों, बाहों और पैरों के साथ अपने वजन का समर्थन करते हुए, ठोड़ी को नीचे लाए बिना छाती को ठोड़ी से स्पर्श करें।
अब इस मुद्रा में अपने निचले हिस्से को ऊपर की ओर मजबूती से महसूस करें। अपनी दोनों जांघों को एक दूसरे के समानांतर और फर्श के समानांतर रखें। आप उंगलियों को आपस में जोड़ सकते हैं और धड़ को थोड़ा और ऊपर उठाने के लिए हाथों को फर्श पर धकेल सकते हैं, या आप अपनी हथेलियों से अपनी पीठ को सहारा दे सकते हैं। सामान्य और धीरे-धीरे सांस लेते रहें। 30 सेकंड या एक मिनट के लिए मुद्रा को बनाए रखना याद रखें, और धीरे-धीरे मुद्रा को छोड़ते हुए साँस छोड़ें।
पोज के फायदे
ब्रिज पोज आपकी पीठ की मांसपेशियों को ताकत देता है।
यह थकी हुई पीठ को तुरंत राहत देता है।
छाती, गर्दन और रीढ़ को फैलाता है।
मस्तिष्क को शांति देता है, चिंता, तनाव और अवसाद के स्तर को कम करता है
सेतु बंधासन आपके फेफड़ों को खोलता है और थायराइड की समस्याओं को कम करता है।
पाचन में सुधार करता है।
रजोनिवृत्ति और मासिक धर्म के दर्द में महिलाओं के लिए अच्छा है।
अस्थमा, ऑस्टियोपोरोसिस और साइनसाइटिस उच्च रक्तचाप में सहायक।
यह योग मुद्रा मस्तिष्क को शांत करती है और आपके थके हुए पैरों को फिर से जीवंत करती है।
पोज की सावधानियां
यदि आप गर्दन और पीठ की चोटों से पीड़ित हैं तो इस मुद्रा को करने की कोशिश न करें या न करें।
सबसे पहले बुनियादी आसनों में निपुण हों, एक बार जब आप सिद्ध हो जाएं तो इस आसन को आजमाएं। यदि आप बुनियादी आसनों में उस्ताद से शुरुआत कर रहे हैं तो उसके बाद इस योग मुद्रा को आजमाएं।
Pawanmuktasana is a very powerful pose at the beginning of the asana practice, which helps entire digestive system and makes asana practice more easy. You can watch this video about pawanmuktasana.
पवनमुक्त आसन अभ्यास की शुरुआत में बहुत शक्तिशाली मुद्रा है, जो पूरे पाचन तंत्र को मदद करता है और आसन अभ्यास को और अधिक आसान बनाता है। इसे गैस रिलीज पोस्चर भी कहा जाता है।
Exhale and while inhaling slowly raise the legs to a 90 degree angle from the floor.
Bend both legs at the knees and rest the thighs against the abdomen, keeping the knees and ankles together.
Encircle the knees with both arms, hands clasping opposite elbows.
Bend the neck and place the chin on the knees. Continue to maintain the asana, breathing normally.
THE ASANA POSITION:
In this position the thighs are pressed against the abdomen and the wrists or elbows are clasped. The neck is bent towards the knees and if possible the forehead or chin is touching the knees. The breath is relaxed.
Releasing the asana position:
Straighten the neck and lower the head back on to the ground.
Release the arms and place them beside the body.
While inhaling straighten both of the legs, let them rest at 90 degrees from the ground.
Exhaling slowly lower the legs back to the supine position.
Overstretch, trying to pull the thighs too close and causing strain.
BENEFITS:
Stretches the neck and back.
The abdominal muscles are tensed and the internal organs are compressed which increases the blood circulation and stimulates the nerves, increasing the efficiency of the internal organs.
The pressure on the abdomen releases any trapped gases in the large intestine.
Blood circulation is increased to all the internal organs.
Digestive system is improved.
Relieves constipation.
Strengthens the lower back muscles and loosens the spinal vertebrae.
Sterility and impotence.
Benefits for Women:
Massages the pelvic muscles and reproductive organs and is beneficial for menstrual disorders.
Reduces fats in the abdominal area, thighs and buttocks.
THERAPEUTIC APPLICATIONS:
Flatulence
Constipation
Menstrual disorders
Sterility
Impotence
Precautions and Contra-indications:
Must be avoided if there is recent abdominal surgery as there is a lot of pressure on the abdomen.
Anyone suffering from hernia or piles should avoid this asana.
Pregnant women should not practice this asana.
If there is any pain, stiffness or injury to the next the head should remain on the floor.
Duration:
To begin with start with 10 seconds and slowly increase up to one minute.
Sequence
It is good to practice this pose on waking as it stimulates bowel movements. During your asana practice, this pose should be the done in first few practices as it will relieve the trapped gases from intestines and will make the asana practice more easy and flexible.
ADDITIONAL SECTION
Variations and tips: / Preparatory poses:
Sulabh Pawanmuktasana (Easy Gas release pose) - Please keep the head on the floor instead of lifting it.
Ardha Pawanmuktasana (Half Gas Release pose) - Instead of bending both the legs, bend one leg.
Nadi Shodhana or alternate nostril breathing is a simple yet powerful technique that settles the mind, body, and emotions. You can use it to quiet your mind before beginning a meditation practice, and it is particularly helpful to ease racing thoughts if you are experiencing anxiety, stress, or having trouble falling asleep.
There are several different styles of Nadi Shodhana, but they all serve the purpose of creating balance and regulating the flow of air through your nasal passages. In fact, the term Nadi Shodhana means “clearing the channels of circulation.” You can watch more in this video.
नाड़ियाँ मानव शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा चैनल है जो विभिन्न कारणों से बंद हो सकती है। नाड़ी शोधन प्राणायाम साँस लेने की एक ऐसी प्रक्रिया है जो इन ऊर्जा प्रणाली को साफ कर सुचारु रूप से संचालित करने में मदद करती है और इस प्रकार मन शांत होता है। इस प्रक्रिया को अनुलोम विलोम प्राणायाम के रूप में भी जाना जाती है। इस प्राणायाम को हर उम्र के लोग कर सकते हैं।
Nadi Shodhana Practice :
Next time you find yourself doing too many things at once, or you sense panic or anxiety begin to rise, move through a few rounds of alternate nostril breathing. It’s a great way to hit the reset button for your mental state.
Take a comfortable and tall seat, making sure your spine is straight and your heart is open.
Relax your left palm comfortably into your lap and bring your right hand just in front of your face.
With your right hand, bring your pointer finger and middle finger to rest between your eyebrows, lightly using them as an anchor. The fingers we’ll be actively using are the thumb and ring finger.
Close your eyes and take a deep breath in and out through your nose.
Close your right nostril with your right thumb. Inhale through the left nostril slowly and steadily.
Close the left nostril with your ring finger so both nostrils are held closed; retain your breath at the top of the inhale for a brief pause.
Open your right nostril and release the breath slowly through the right side; pause briefly at the bottom of the exhale.
Inhale through the right side slowly.
Hold both nostrils closed (with ring finger and thumb).
Open your left nostril and release breath slowly through the left side. Pause briefly at the bottom.
Repeat 5-10 cycles, allowing your mind to follow your inhales and exhales.
नाड़ियों में बाधा का कारण
नाड़ियाँ तनाव के कारण बंद हो सकती हैं।
भौतिक शरीर में विषाक्तता भी नाड़ियों की रुकावट की एक कारण हो सकता है।
नाड़ियाँ शारीरिक और मानसिक आघात के कारण बंद हो सकती है।
अस्वस्थ जीवन शैली।
क्या होता है जब ये नाड़ियाँ बंद हो जाती हैं?
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन नाड़ियाँ, मानव शरीर की सबसे महत्वपूर्ण नाड़ियाँ हैं।
जब इड़ा, नाड़ी ठीक तरीके से काम नही करती अथवा बंद हो जाती हैं तब व्यक्ति ज़ुकाम, मानसिक ऊर्जा में कमी, अस्थिर पाचन क्रिया, बंद बायाँ नथुना, और निराश व उदासी का अनुभव करता है। जब पिंगला नाड़ी ठीक रूप से काम नही करती अथवा बंद हो जाती है तब गर्मी, जल्दी गुस्सा और जलन, शरीर में खुजली, त्वचा और गले में शुष्कता, अत्यधिक भूख, अत्यधिक शारीरिक या यौन ऊर्जा और दायीं नासिका बंद होने का अनुभव होता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) करने के तीन मुख्य कारण
अनुलोम विलोम प्राणायाम से मन को आराम मिलता है और इसे ध्यानस्थ स्थिति में प्रवेश करने के लिए तैयार करता है।
हर दिन बस कुछ ही मिनटों के लिए यह अभ्यास मन को स्थिर, खुश और शांत रखने में मदद करता है।
यह संचित तनाव और थकान को दूर करने में मदद करता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) करने की प्रक्रिया
अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा और कंधों को ढीला छोडकर आराम से बैठें। एक कोमल मुस्कान अपने चेहरे पर रखें।
अपने बाएँ हाथ को बाएँ घुटने पर रखें, हथेली आकाश की ओर खुली या चिन मुद्रा में। (अंगूठा और तर्जनी हल्के छूते हूए)।
तर्जनी और मध्यमा को दोनों भौहों के बीच में, अनामिका और छोटी उंगली को नाक के बाएँ नासिका पर और अंगूठे को दाहिनी नासिका पर रखें। बाएँ नासिका को खोलने और बंद करने के लिए हम अनामिका और छोटी उंगली का और दाएँ नासिका के लिए अंगूठे का उपयोग करेगें।
अपने अंगूठे को दायीं नासिका पर धीरे से दबा कर बायीं नासिका से साँस बाहर निकालें।
अब बायीं नासिका से साँस लीजिये और उसके बाद बायीं नासिका को अनामिका और छोटी उंगली के साथ धीरे से दबाएँ। दाहिने अंगूठे को दायीं नासिका से खोलकर दायीं नासिका से साँस बहार निकालें।
दायीं नासिका से साँस लीजिये और बायीं ओर से साँस छोड़िए। अब आपने अनुलोम विलोम प्राणायाम का एक राउंड पूरा कर लिया है। एक के बाद एक नासिका से साँस लेना और छोड़ना जारी रखें।
इस तरह बारी-बारी से दोनों नासिका के माध्यम से साँस लेते हुए 9 राउन्ड पूरा करें। हर साँस छोड़ने के बाद याद रखें कि उसी नासिका से साँस भरे जिस नासिका से साँस छोड़ी हो। अपनी आँखें पूर्णतः बंद रखें और किसी भी दबाव या प्रयास के बिना लंबी, गहरी और आरामदायक साँस लेना जारी रखें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) का अभ्यास करते समय इन बातों का ख्याल रखें
साँस पर जोर न दें और साँस की गति सरल और सहज रखें। मुँह से साँस नहीं लेना है या साँस लेते समय किसी भी प्रकार की ध्वनि ना निकाले।
उज्जयी साँस का उपयोग न करें।
उंगलियों को माथे और नाक पर बहुत हल्के से रखें। वहाँ किसी भी दबाव लागू करने की कोई जरूरत नहीं है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के पश्चात् यदि आप सुस्त व थका हुआ महसूस करते हैं तो अपने साँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया पर ध्यान दें। साँस छोड़ने का समय साँस लेने से अधिक लंबा होना चाहिए अर्थात् साँस को धीमी गति से बाहर छोड़ें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) करने के कुछ अच्छे नुस्खे
अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के पश्चात ध्यान करना लाभदायक है।
इस साँस की प्रक्रिया का अभ्यास पद्म साधना के भाग के रूप में भी किया जा सकता है।