शिव सूत्र ४ : तीन अवस्था


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         🌹 शिव सूत्र 🌹

      🌺 प्रथम खण्ड 🌺

     🍀 सूत्र ४ 🍀

      🍁'जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तभेदे तुर्यायोगसंभव: '🍁

अगले सूत्र में बताते है- जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तभेदे तुर्यायोगसंभव:

तीन अवस्था तो हम सब जानते ही हैं - जाग्रत अवस्था, स्वप्नावस्था और निद्रावस्था । इन तीनों अवस्थाओं के बीच में कुछ  क्षण ऐसे मिलते हैं, जहाँ हम न जाग रहे हैं न सो रहे हैं, न स्वप्न देख  रहे हैं, न नींद में है । क्षण भर के लिए ऐसी जो स्थिति होती है वह है तुरीय अवस्था । वही शिव अवस्था है । यदि उस स्थिति पर भी हम ध्यान देते हैं तो समाधि लगने लगती  है । चिन्तासे मुक्त होने लगते हैं । फिर वह बालपन जो स्वभावगत है, निखरने लगता है । शिव तत्व को खोजना हो तो उसे कहाँ खोजे  ? वह कैलाश पर्वत पर नहीं है । शिव तत्व को खोजना हो तो जाग्रत व स्वप्नावस्था के मध्य में खोजे । जब नींद से जग रहे हैं और पूरी तरह  से जागे भी नहीं, उस समय आँख बंद कर थोड़ी देर ध्यान में बैठो । तब मन विचारों से मुक्त होकर गहराई में उतरता है और उस चैतन्य आत्मा का अनुभव होने लगता है । वह चैतन्य ही आत्मा है यह चतुर्थावस्था का अनुभव इन तीनों के बीच-बीच में उपलब्ध होने लगता है । वह चैतन्यस्वरूप प्रकट होने लगता है । 


एक नवजात शिशुमें जो चैतन्य है, एक नन्हें मुन्ने बालक में जो जीवन्तता है प्राय: प्रौढ़ अथवा बहुत पढ़े- लिखे व्यक्तियों में  नज़र  नहीं आती है । जो आत्मा चैतन्यरूपी है, जो चैतन्यस्वरूप प्रकट होता है बच्चों में,  धीरे-धीरे बहुत पढ़-लिखे व्यक्तियों में गायब होने लगता है । इसका कारण क्या हैं ? क्या हम जीवन को सही मायने में जीते भी है या सिर्फ एक सूचना के यंत्र बन गये हैं ? सूचना इकट्ठा करके यंत्र बन जाने से या जीवन्तता के अभाव से जीवन प्रकट नहीं हो पाता । सब कुछ यांत्रिक हो जाती है । मुस्कान गायब हो जाता है । कहते हैं कि एक शिशु एक दिन में चार सौ बार मुस्कुराता है । एक युवा केवल सत्रह बार मुस्कुराता है । एक प्रौढ़ व्यक्ति मुस्कुराता ही नहीं और बड़े प्रोफेसर हो गये तो भूल ही जाओ, वे तो मुस्कुराते ही नहीं, वे समझते हैं बहुत बड़ा अपराध है मुस्कुराना । चेतना का क्या लक्षण है ? चेतना का लक्षण है उत्साह, प्रेम,आनंद, सृजनात्मकता । चाहे उपद्रव भी करो कोई हर्ज  नहीं, कुछ तो करते रहो वह चैतन्य का नटखटपन भी ठीक है वह चैतन्य का ही लक्षण है । जहाँ चेतना होती है वहाँ जड़ता नहीं होती । जड़ बन के बैठे रहें यह तो चेतना का अभाव है । ऐसी चेतना का प्रस्फुरण अथवा विकास जीवन में चाहिए ।