उद्यमो भैरव:


🌷🍂🍂🍃🌷 ॐ 🌷🍃🍂🍂🌷

         🌹 शिव सूत्र 🌹

      🌺 प्रथम खण्ड 🌺

     🍀 उद्यमो भैरव: 🍀

          🍁  सूत्र - ३ : 🍁


🌺पृष्ठ  ७

अगला सूत्र है - ' उद्यमो भैरव: ' - हमारा शरीर और मन अलग-अलग नियमों पर कार्य करते हैं । शरीर में जितनी ताकत लगायेंगे, व्यायाम करेंगे, उतना ही वह हृष्ट- पृष्ट होने लगेगा पर मन के लिये एक अलग ही ढंग है, जितना आप विश्राम करोगे उतना ही मन तीक्ष्ण होने लगेगा । ' उद्यमो भैरव: ' यह विलक्षण सूत्र है । जहाँ हम पुरुषार्थ नहीं करते, वहाँ पर न तो साधना सिद्ध होती है और न ही संसार में कोई कार्य सिध्द होता है । उसके लिए हमें पूरा प्रयत्न करना पड़ेगा ।
                        
 पूरा प्रयत्न करो । ऐसा नहीं कि भगवान की जब इच्छा होगी तब हो जायेगा । आपके मन में किसी बात की इच्छा उठी हो वो भगवान के द्वारा ही उठी है तो उसके लिए उद्यम करो । हम अक्सर क्या करते हैं ?  हम उद्यम से, प्रयत्न से बचने की चेष्टा करते हैं । कहा गया है- '  उद्योगिनं पुरुष: सिंह भुपैति लक्ष्मी ' जो उद्योगी है उन्हीं को भाग्य प्राप्त होता है । आलसी व्यक्ति को भाग्य प्राप्त नहीं होता है ।
  
   ' उद्यमो भैरव: ' अर्थात उद्यमी बनों । जैसे 'ईश्वर ' ने उंगलियां दी है परंतु इसका प्रयोग कैसे करना है यह उद्यम पर निर्भर है । सितार बजाना है तो कैसे बजायें ? उसके लिए एक विशेष प्रकार के अभ्यास की जरूरत है । कम्प्यूटर में टाइप करना हो तो उसके लिए भी अभ्यास की जरूरत है । आध्यात्मिक हो या पारमार्थिक कुछ भी कार्य करना हो तो हमें अपना प्रयत्न जारी रखना पड़ेगा।

जब हम अपनी पूरी चेष्टा करते हैं, ताकत लगा देते हैं, तो उसके बाद विश्राम के क्षणों में ही समाधि लगती है । आलसी व्यक्ति को कभी समाधि नहीं लग सकती । सेवा, साधना, सत्संग - तीनों ज़रूरी है । यदि हमारा ध्यान नहीं लगता है, मन शांत नहीं होता है तो इसकी वजह है रजोगुण की वृध्दि । रजोगुण को जब हम काम में नहीं लगाते  हैं तब रजोगुण चिंता के रूप में परिणित हो जाता है । उद्यम करो, प्रयत्न करो ।कार्यरत रहने से, काम करते रहने से रजोगुण शांत होने लगता है । जो करने का मन है उसे करके शांत हो जायें और जो नहीं करना है उसको छोड़कर शांत हो जायें । रजोगुण की प्रवृत्ति है कि उसमें पूरा उद्यम लगाने से  आदमी सत्वगुण में पहुँच जाता है । इसलिए ' उद्यमो भैरव: ' ऐसा कहा गया है । बैठ नहीं पाते हो , मस्ती में डूब नहीं पाते हो तो उद्यम करो । साधना, सेवा, सत्संग के द्वारा आप पुन: अपने स्वभाव में आ सकते हो । स्वात्मानंद प्रकाशवपुरो - हमारा अपना स्वभाव जो कि आनंदमय, ज्ञानमय, प्रकाशमय है उसमें टिकने में आसानी होगी ।

      इसलिए जो खाली बैठे रहते हैं, उन्हें ध्यान नहीं होता । जो उद्यमी हैं और ध्यान में बैठते है उन्हें अच्छी तरह समाधि लगने लगती है और वे शिव तत्व में प्रविष्ट होने लगते हैं ।

🍀🌸🌺🌻 जय गुरुदेव 🌻🌺🌸🍀