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🌹 शिव सूत्र 🌹
🌺 प्रथम खण्ड 🌺
🍀 चैतन्य आत्मा 🍀
🍁 सूत्र - १ : 🍁
अथः शिवसूत्र
अब हम शिवसूत्र देखते हैं
हम में से प्रत्येक के जीवन में कुछ न कुछ शुभ जरूर घटा हैं,लेकिन मन का स्वभाव है कि हम शुभ को छोड़ देते हैैं एवं नकारात्मक घटना हैै, उसी को पकड़ कर बैठ जाते हैं। दस अच्छी अच्छी बातें आपको सुनाये और मात्र एक गाली दें तो आप किसे पकड़ कर बैठते हो?
चित्त का स्वभाव हो गया है कि हम नकारात्मकता को पकड़ कर बैठते हैं । यदि हमें इस स्वभाव से मुक्ति चाहिए तो ' शिवसू्त्र ' को समझना होगा । जीवन में शुभ को पकड़ आगे कर चलें । वस्तुत: सत्य जो शिव है, जो शुभ है और जो सुंदर भी है, उसके जरिए संसार सागर से पार होने की एक विधि है शिवसूत्र ।
सबसे पहला सूत्र है :-
भगवान शंकर कहते हैै- चैैतन्य आत्मा , कि तुम चैतन्य आत्मा को खोजना चाहते हो लेकिन आत्मा कहीं दूर कोई वस्तु नहीं हैै । इस सृष्टि में , जिससे सब कुछ बना हैै या पूरी सृष्टि ही जिससे बनी हैै, वह चैतन्य आत्मा ही है । हमे अपना अनुभव भी उस चैतन्य के द्वारा ही होता है । चैतन्य ही वो शक्ति हैै जिससे हम स्वयं को जान पाये, स्वयं को जानने की शक्ति केवल चैतन्य में ही है । जहाँ चैतन्य की वृध्दि होती हैै वहाँ होश भी बढ़ जाता हैै लेकिन अन्तर इतना हैै कि जागृत व्यक्ति जानता हैै और सोया हुआ व्यक्ति उसे जान नहीं पाता ।
सबसे पहला सूत्र हैै - चैैतन्य आत्मा । इस प्रकृति में देखोगे तो कण कण में चैतन्य दिखाई देता है । कहीं -कहीं चैतन्य सोया हुआ है उसकी अभिव्यक्ति पूर्ण रुप से नहीं हुई हैै तो कहीं कहीं उसकी अभिव्यक्ति अधिक है । इतना समझने मात्र से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य पर पहुँच सकता है जो स्वात्मानंद प्रकाश है । आनंद के प्रकाश रुपी हमारी चेतना है । चैतन्य आत्मा ।
समस्त साधनाएँ क्रियाएें ,यज्ञ , हवन, होम, ध्यान-पुण्य चैतन्यता की वृध्दि के लिए ही है । चेतना को बढा़ने के लिए है । चेतना को बढ़ाओ तो आत्म साक्षात्कार होने लगेगा कि चैतन्य ही आत्मा है । चेतना को बढा़ओ यह कहना भी उचित नहीं है, वस्तुत: चेतना न बढ़ती है न घटती है । चेतना तो सर्वत्र व्याप्त है , लेकिन उसके प्रति हमारा ज्ञान बढ़ता है या घटता है । उसकी अनुभूति बढ़ती है या घटती है ।