ज्ञानधिष्ठानं मातृका


🌹 शिव सूत्र 🌹

      🌺 प्रथम खण्ड 🌺

     🍀 ज्ञानधिष्ठानं मातृका 🍀

          🍁  सूत्र - २ : 🍁

          
अगला सूत्र है  ' ज्ञानधिष्ठानं मातृका '

     ' ज्ञान ' किसी भाषा के माध्यम से ही समझ में आता है ।  अनुभति को हम जब ज्ञान  के रूप में परिवर्तित करते हैं तो वह किसी न किसी भाषा के रूप में ही हो सकता है । कुछ शब्दों से पद बनता है, पद वाक्य बनता है ,वाक्य से  हमे ज्ञान होता है ।तो ज्ञान का मूल है  - अक्षर । अक्षर से पद, पद से वाक्य । जब कोई चिन्ता आपको सताती है तो वह चिन्ता किसी वाक्य या पद  के बिना हो ही नहीं सकती । किसी भाषा के बिना आप चिन्ता कर ही नहीं सकते । ऐसी स्थिति में कभी - कभी ज्ञान हमारे लिए  बन्धन का कारण बन जाता है । अनुभूति से रहित ज्ञान जीवन में बन्धन लेकर आता है , चिन्ता का कारण बन जाता है । इससे कैसे मुक्त हुआ जाये ? इस बन्धन से कैसे छुटकारा पाये ?
                     
'ज्ञानधिष्ठानं मातृत्व '  वाक्य को समझे बिना ज्ञान नही हो  सकता । कोई चिन्ता ना हो, किसी भी जानकारी के लिए भाषा की जरूरत होती है , शब्दों की  जरूरत होती है ।  उस वाक्य का भेदन करते हुए, वाक्य के भेद से  जो अक्षर  मिलता है उस अक्षर तक पहुँचे ।  वही मातृशक्ति है , वही दैवीय शक्ति है । उसकी सहायता से हम चिन्ता से मुक्त हो सकते है इसलिए  मन्त्र को भी कहा है  " मनना त्रयते इति मन्त्र:।जिसे बार- बार  मन में दोहराने से  चिन्ता रूपी भाषा या वाक्य से मुक्त हो जाये । यह एक उपाय हैै । चिन्ता किसी वाक्य से होती है तो उस वाक्य पर ही मन केन्द्रित   करो । उस चिन्ता को ही लेकर  बैठें । उस चिन्ता को तोड़ते जायें ।


जैसे ' बेटे को नौकरी नहीं मिल रही है ' यह एक चिन्ता है मन में , तो  उसी को लेकर बैठें  बे- टे- को- नौ-क-री  एेसे एक एक अक्षर देखते जाएँ । चिन्ता  बहुत तेजी से होती है मगर उसको धीरे धीरे  खण्डित करते जाते है तो मन उस वाक्य से शब्द से हट कर ध्यान में जाने लगता है । चिन्ताओं से मुक्ति मिलने लगती है ।  नहीं तो ध्यान के लिए कितनी बार बैठते हैं और चिन्ता को हटाने की चेष्टा करते हैं लेकिन वे हटती नहीं है । चिन्ता को लेकर उसके मूल मात्रा में चले जायें । उसके अर्थ और शब्दों का भेद करते चले जायें । तभी  ध्यान में  गति होने लगती है । फिर - ' शक्ति चक्र संघाने विश्व संंहार : ( शक्ति चक्र का संहरण करने से विश्व संहार होता है ) । शरीर में जो शक्ति केन्द्र है वहाँ पर ध्यान लगाते लगाते मस्त हो सकते हैं ।