EVOLUTION: NOT PART OF THE SELF
Are you evolving? If you are evolving, you are not in the Self. And you are not out of the Self, because nothing can exist out of the Self. Broadly they can be put in these 5 catagories. There are six distortions that do not exist in the Self.
1. Expansion -- Prasarana. Expansion indicates there is already something into which something expands. That which expands cannot be the basis for expansion.
2. Contraction -- Akunchana. Contraction means something shrinks from something else. Self does not withdraw or shrink from anything, so contraction does not exist in the Self.
3. Evolution -- Vriddhi. Evolution is becoming something which it is not already. Self is the same, so it cannot evolve.
4. Decay -- Kshaya. There is no devolution or decay in the Self. It doesn't get old or stale. That's why, when you are close to your Self, you don't feel that you are aging.
5. Beginning -- Anaadi. Self has no beginning. If God has a beginning, then He is no God.
6. Lack -- Abhava. Self has no lack. Whatever lacks something is not complete. Self does not lack anything, it is complete. Lack indicates existence of something outside itself. That doesn't exist for the Self. So if you feel you have not grown at all, don't worry, you are close to the Self. (Laughter)
When your mind is with the Self, then you don't worry about evolution. If you are thinking about evolving, then you are stuck in the mind. And mind is part of the matter, and matter evolves and decays.
And that is how the experience of contraction and expansion is all play and display of the mind. Mind expands and contracts. When it expands, it comes close to the truth, which has no expansion.
Are you still evolving? Good luck!!
Sri Sri Ravi Shankar ji
Bad Antogast, Germany
20 Jan 2000
Weekly Knowledge 237
Jai Guru Dev
In Hindi :
साप्ताहिक ज्ञानपत्र २३७
२० जनवरी, २०००
जर्मनी
विकास आत्मा का अंश नहीं
क्या आप विकास कर रहे है? यदि आप विकसित हो रहे है, तो आप आत्मा में नहीं है। लेकिन आप आत्मा के बहार भी नहीं है , क्योकि आत्मा के बहार कुछ हो ही नहीं सकता। ६ विकृतिया है जो आत्मा में नहीं होती:
१. प्रसारण - प्रसारण का अर्थ है की कुछ है जिसमे फैल सकते है। जो फैलता है वह प्रसारण का आधार नहीं हो सकता।
२ आकुंचन - आकुंचन मतलब कुछ सिकुड़ता है किसी दूसरी चीज से। आत्मा किसी से सिकुड़ती नहीं है, इसलिए आकुंचन का अस्तित्व आत्मा में नहीं है।
३ वृद्धि- वृद्धि कुछ बनने की प्रक्रिया है जिसका अस्तित्व अभी नहीं है। आत्मा सदैव अमां है , इसलिए इसमें वृद्धि नहीं हो सकती।
४ क्षय - आत्मा में कोई क्षय या अवनति नहीं होती, यह कभी पुरानी या बासी नहीं होती। इसलिए , जब आप आत्मा के समीप होते है तो उम्र के बढ़ने को महसूस नहीं करते।
५ अनादि - आत्मा का कोई आदि नहीं है। यदि ईश्वर का कोई आदि है, कोई शुरुआत , तो वे ईश्वर नहीं है।
६ अभाव- आत्मा में कोई अभाव नहीं। जिसमे भी कुछ अभाव हो, तो वह पूर्ण नहीं। आत्मा में किसी भी चीज का अभाव नहीं है- वह पूर्ण है। अभाव सूचित करता है अपने से बाहर किसी का अस्तित्व - यह आत्मा में सम्भव नहीं।
यदि आपको लगता है आपका थोड़ा भी विकास नहीं हुआ है , तो चिंता मत कीजिए - आप आत्मा के समीप है।
जब आपका मन आत्मा के साथ है , तो आप वृद्धि की चिंता नहीं करते। यदि आप अपने विकास की सोच रहे है, तो आप मन में फंसे हुए है। मन भौतिकता का अंश है और भौतिक पदार्थो का विकास और क्षय होता है।
तो आकुंचन और प्रसारण का अनुभव मन ही का खेल और प्रदर्शन है। मन का विस्तार और आकुंचन होता है। जब मन विस्तृत होता है तो सत्य के समीप जाता है, जिसका कोई विस्तार नहीं।
क्या अब भी आप विकास कर रहे है?
सफल रहो।
जय गुरुदेव